
बिश्वजीत सिंह चन्देल,शिक्षक


। शिक्षक के पास ही वह कला है जो मिट्टी को सोने में बदल सकती है।


सिकंदर के उत्तराधिकारी सेनापति सैल्यूकस और सम्राट चन्द्रगुप्त के बीच का संघर्ष केवल इन दो राजाओं का निजी संघर्ष नहीं था ! वह संघर्ष था दो महान गुरुओं की प्रज्ञा-चेतना का, दो महान गुरुओं के अस्तित्व का। एक थे सामान्य किन्तु विलक्षण, भारतीय युवा-गुरु, तक्षशिला-स्नातक ‘चाणक्य’ और दूसरे थे यूनान के कुल-गुरु, राजवंशियों के ज्ञान-स्रोत ‘अरस्तू’। परिणाम सामने था। यही वह समय था जब वैश्विक पटल पर भारतीय गुरु-परंपरा के प्रति आदर और भय का जन्म हुआ। मैकाले की दी हुई शिक्षा-पद्धति से षड्यंत्र-पूर्वक शिक्षक के महत्व को समाप्त करने का कुटिल प्रयास किया गया।
शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर अपने सभी मित्रों को, प्रथम गुरु माँ से लेकर जीवन मे आने वाले सभी गुरुवर को नमन के साथ, भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति महान शिक्षक सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन की जयन्ती की बहुत बहुत शुभकामनाए।
साभार बिश्वजीत सिंह चंदेल ,शिक्षक
