Sunday, December 3, 2023
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रूद्राक्ष है क्या जानिए,


कहानी बताती है-एक त्रिपुर नामक राक्षस ने अपनी दुश्चरित्रता और शोखी स्वभाव से पृथ्वी के साथ साथ देवता तक को आतंकित कर रखा था।उस के विनाश के लिए सभी प्रभावित योगी शंकर की शरण में गये।उन्होंने चिंतन किया तो उन्हें “अघोर” नामक अस्त्र उपयुक्त सुझा,जो उनके दिव्यास्त्रों में से एक था और उस राक्षस को मारने का सामर्थ्य रखता था।लंबे समय तक अस्त्र के स्मरण के क्रम में शंकर जी के आंखों से आंसू टपका।यह आंसू जहां गिरा,वहां एक पेड़ उगा।उस पर फल लगे।उन फलों से गुठली निकली और वही “रूद्राक्ष” कहलाया।वैसे भी ‘रूद्र’ महा योगी का ही नाम है और उसका ‘अक्ष’ मतलब आंख यानि शिव की आंख है ‘रूद्राक्ष’!
यह अड़तीस प्रकार का होता है।महा योगी शिव ने सूर्य,चंद्रमा और अग्नि के माध्यम से भी ‘रूद्राक्ष’ पैदा करवाया,ऐसी भी किंवदंती है।सूर्य से उत्पन्न रूद्राक्ष कत्थई,चंद्रमा से उत्पन्न श्वेत और अग्नि से उत्पन्न कृष्ण वर्ण का होता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह एक फल ही है और इसे खाया नहीं जाता बल्कि इस के गुदे को फेंक दिया जाता है और इसकी गुठली को गर्दन में धारण किया जाता है।यूं यह काष्ठ स्वरुप में होता है पर पानी में डालने पर यह डूब जाता है।पानी में इसका डूबना यह दर्शाता है कि इसका आपेक्षिक घनत्व ज्यादा होता है।इस में लोहा,निकल,जस्ता,मैंगनीज, अलम्यूनियम,फास्फोरस,कैल्शियम,कोबाल्ट,मैग्नीशियम,सोडियम, पोटेशियम,सिल्का,गंधक आदि पाये जाते हैं।इस के भीतर इतने सारे गुण-तत्व छुपे होते हैं कि इसे धारण करने वाले को निश्चित ही लाभ पहुंचना ही पहुंचना है।शरीर से इस के स्पर्श मात्र से शरीर की सारी व्याधियां नष्ट हो जाती है।
व्यवसायिक दृष्टि से रूद्राक्ष के तीन रंग स्वीकार्य हैं-लाल,मिश्रित लाल और काला।इस पर धारियां बनीं होती है।ये धारियां ही मुख कहलाता है।यहां के रूद्राक्ष एक्कीस मुखी तक होते हैं पर अभी चौदह मुखी रूद्राक्ष ही पाये जा रहे हैं।यै सभी एक ही पेड़ से उत्पन्न होते हैं।एक मुखी रूद्राक्ष साक्षात शिव स्वरुप होता है और मिथक है कि स्वयं शिव इसे धारण करते हैं।सभी मुखों वाले रूद्राक्षों का अपना अपना महत्व होता है।इसे देवी को भी चढ़ाया जाता है और ऐसे रूद्राक्ष देवियों की महिमा को सिद्ध करते हैं।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार एक्कीसों रूद्राक्ष को धारण करने के पूर्व मंत्र सिद्ध करना पड़ता है।अलग-अलग मुखों वाले रूद्राक्ष अलग-अलग देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।अगर एकमुखी रूद्राक्ष धारण करना है तो शास्त्रों के अनुसार “ॐ नमः शिवाय” मंत्र को पढंना होता है क्योंकि यह साक्षात शिव का प्रतिनिधित्व करता है।वहीं दो मुखी के लिए “नमः शिवाय” कहना उपयुक्त होता है क्योंकि यह अर्धनारीश्वर का प्रतिनिधि है।तीन मुखी के लिए “ॐ क्लीं नमः” कसना होता है क्योंकि यह अग्निदेव की पसंद है।ऐसे ही हर मुखी रूद्राक्षों के लिए अलग-अलग मंत्र निर्धारित किये गये हैं,जो रूद्राक्ष देवता मंत्र के रुप में हमारे ग्रंथों में वर्णित हैं।
भारत के आर्युवेदिक चिकित्सा पद्धति में रूद्राक्ष का महत्वपूर्ण योगदान सिद्ध है।दाहिने हाथ में पहनने से बल,वीर्य,कांति बढ़ती है तो गर्दन में बांधने से गले के रोगों का खात्मा हो जाता है।इसे तीन घंटा पानी में रख कर,फिर निकाल लेने के बाद उस पानी को पीने से घबड़ाहट,बेचैनी दूर हो जाती है।
रूद्राक्ष के आसपास का एक और फल होता है,जिसे “भद्राक्ष” कहते हैं। यह रूद्राक्ष ही की तरह का होता है और इसी के कारण यह भ्रांति है कि रूद्राक्ष दो नंबरी भी होता है।ऐसे में इसे पहचानने के भी उपाय बताये गये हैं।अगर तीन घंटा तक इसे गर्म पानी में उबाला जाय और इसका रंग ना छूटे तो वह वास्तविक रूद्राक्ष माना जाता है।
रूद्राक्ष धारण करने से फायदा ही फायदा है।ना धारण करने से भी जब कोई अंतर नहीं आता तो धारण कर लेना ही श्रेयस्कर है।इस से घाटा कुछ भी नहीं।इसे धारण करते ही मन में शिवत्व का भाव प्रस्फुटित होता है।
आज सावन का अंतिम सोमवार है और साक्षात शिव जी का दिन है।तो क्यों नहीं हम सब भी रूद्राक्ष धारण करें!
हर हर महादेव

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