Sunday, December 3, 2023
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राजस्थानी परम्परा में गणगौर विरासत का एक प्रमुख त्यौहार है

राजस्थानी परम्परा में गणगौर विरासत का एक प्रमुख त्यौहार है। धुलेटी के दिन से शुरू हुए गणगौर पर्व का 18 दिन तक लड़कियां- महिलाएँ प्रतिदिन प्रातःकाल ईसर और गौर की पूजा करती है। इसे सुहाग का पर्व भी कहा जाता है। इसी परम्परा को कायम रखते हुए छपरा में राजस्थानी महिलाओं ने सोलह श्रंगार करके रंग बिरंगे परिधान पहनकर, लोकगीत गाकर और उन पर घूमर नृत्य कर ईसर-गौर का सिंघारा कर गणगौर को रिझाया गया। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया शुक्रवार को गणगौर विसर्जन से पहले सुबह में कई घरों में उद्यापन भी किए गए।
पत‍ि की लंबी उम्र की कामना हो या मनचाहा वर पाने की कामना हो, मह‍िलाएं मां गौरी का गणगौर व्रत करती हैं। यह व्रत मुख्‍यत: राजस्‍थान का पर्व है जो प्रत्‍येक वर्ष चैत्र मास की शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
यह व्रत सुहाग‍िनें अपने पत‍ि को बताएं ब‍िना हीं रखती हैं। आइए जानते हैं क्‍यों है ऐसी अनोखी परंपरा…

एक बार की बात है कि भगवान शंकर और माता पार्वती भ्रमण के लिये निकल पड़े, उनके साथ में नारद मुनि भी थे। चलते-चलते एक गांव में पंहुच गये उनके आने की खबर पाकर सभी उनकी आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू गांव से आने लगी लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पंहुचती उससे पहले हीं गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन लेकर अर्पित करने पहुँच गयी।
माता पार्वती ने उनकी श्रद्धा व भक्ति को देखते हुए सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। जब उच्च घरों स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान, पकवान लेकर हाज़िर हुई तो माता के पास उन्हें देने के लिये कुछ नहीं बचा तब भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा, अपना सारा आशीर्वाद तो उन गरीब स्त्रियों को दे दिया अब इन्हें आप क्या देंगी? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा लेकर यहां आयी है उस पर हीं इस विशेष सुहाग रस के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी।
तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्रों पर पड़े और वे धन्य हो गई। लोभ-लालच और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने पंहुची महिलाओं को निराश लौटना पड़ा। मान्यता है कि वह दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था। तब से लेकर आज तक स्त्रियां इस दिन गण यानि की भगवान शिव और गौर यानी क‍ि माता पार्वती की पूजा करती हैं।

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