
‘युग संस्कृति न्यास’ के तत्वावधान में, नई दिल्ली के जनपथ होटल में, विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षाविदों, उद्यमियों और लोकसेवकों के लिए पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया गया।


महान राजनीतिक चिन्तक, श्री देवदास आप्टे इस कार्यक्रम के ‘मुख्य अतिथि’ और श्री जय प्रकाश सिंह, आईजी पुलिस (शिमला) ‘विशिष्ट अतिथि’ थे। इस अवसर पर ‘Role of Educational Institutions in preserving Cultural Heritage of India’ विषय पर अनेक वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे। करीब 20 कुलपतियों, 2 उद्यमियों और 2 लोकसेवकों को ‘शिक्षा और संस्कृति’ के प्रचार-प्रसार के लिए सम्मानित किया गया। लोक-सेवा क्षेत्र से झारखण्ड के पूर्व मुख्य-सचिव के साथ श्री जय प्रकाश सिंह को पुरस्कार दिया गया। इस सम्बन्ध में दूरभाष पर हुई वार्ता में आईजी साहब ने कहा :


“संस्कृति के बिना व्यक्ति, समाज या राष्ट्र अपूर्ण और निष्प्राण है। जिस जीवन-पद्धति से आत्मा सुसंस्कृत होकर पूर्ण विकसित हो और उसके अन्त: से राग-द्वेष, मोह-मत्सर आदि विकार निर्मूल होकर वह सम्पूर्ण गुण-सम्पन्न एवं प्रकाशमय हो, वही संस्कृति है। किसी भी राष्ट्र की पहचान केवल भौतिक विकास और आर्थिक समृद्धता से करना योग्य नहीं हो सकता, क्योंकि अगर पीढ़ी दर पीढ़ी उच्च मूल्यों और नैतिक शिक्षा को हस्तांतरित नहीं किया गया हो तो या तो वो राष्ट्र संस्कृति विहीन प्रतीत होता है या फिर नई पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय होते देर नहीं लगती। हर राष्ट्र की एक संस्कृति परम आवश्यक चीज होती है। भारत जितना विशाल अपने भूमि मापदंड से है, उससे विस्तृत भारत की संस्कृति है। लोग ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के आदर्श में विश्वास करते हैं। हमलोग तो यज्ञ भी सम्पूर्ण विश्व के कल्याण हेतु करते हैं :
{ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥}
{अर्थ : आसमान में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हो, जल में शांति हो, औषधियों में शांति हो, पेड़-पौधों में शांति हो, विश्व के सभी देवताओं में शांति हो, परब्रह्म में शांति हो, सभी में शांति ही शांति हो। ओम शांति शांति शांति।}
लेकिन पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का दुष्प्रभाव भी हमारी संस्कृति पर पड़ रहा है। कम्प्यूटर और सोशल मीडिया के इस युग में हमारी नई पीढ़ी इसके चपेट में आ रही है। इसलिए, शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ गैर-सरकारी संस्थाओं को भी इस क्षेत्र में काम करने की जरूरत है ताकि हम अपने सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाये रख सकें।”
