
नहीं बरसता पानी तो तू किस कदर बेचैन है बोलोऽ,


कहीं अति बरसात तो कहीं सूखा पड़ने की आशंका-आखिर दोषी कौन?इस सावन में बिहार के हर क्षेत्र में जब झमाझम बरसात होनी चाहिए थी,इस के विपरीत खेतों में धूल उड़ रही है।किसानों के चेहरे स्याह होने लगे है।डर बढ़ता जा रहा है कि कहीं सूख न जायें खेत और फिर इस के बाद क्या होगा?नया पन्ना जुड़ेगा भविष्य के इतिहास में-2022 में अकाल पड़ा था।
पिछले बीस वर्षों पर ही दृष्टि डालते हैं,जब सारे खेत पानी में डूबे रहते थे,
वह भी इतना कि रोपने से लेकर धान काटने तक खेत में पानी लगातार रह जाता था और खेतों में काई तक जम जाती थी।मछलियां तैरती थीं।किसान आह्लादित रहता था।तब चिंतामुक्त बधार की बेटियां और पतोहु सावन में
झूला डालकर पेंगा मारती थीं।हर तरफ हरियाली छाई रहती थी और मेंहदी के पत्ते पौधों से उतर कर हथेली पर जम जाते थे।कजरी-बारहमासा अपनी पूरी ऊंचाई पर हुआ करता था।कहीं कोई फिक्र नहीं,कहीं कोई उदासी नहीं।सभी हर्षित रहते थे।
आज बात वो नहीं है,हम घबड़ाये से हैं।कल हमने जो पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाई थी,आज लग रहा है,
वो कुल्हाड़ी तो हमने अपने पैरों पर ही चला दी थी।हमने अंधाधुंध पेड़ काटे।हमने अपना विस्तार किया।हमने कमाई भी खूब की पर वह कमाई किस काम की कि हम अकाल से मर जायें।हमारे भाई-बांधव हम से बिछड़ जायें।हमारे पशु-पक्षी,हमारे अपने जानवर हमारे ही सामने तड़प-तड़प कर मर जायें?
विकट स्थिति है और इस स्थिति के पैदा होने के कारण भी हम हीं हैं।जो हरीतिमा हमारे आसपास रहती थी
,जिस से हमें वर्षा मिलती थी,हमने उसे गंवा दिया है।हमें अतिशीघ्र विचार करने होंगें और निदान के रुप में त्वरित प्रयास कर पौधे लगाने हीं होंगें।वही एकमात्र विकल्प है।धरती बची,तभी हम बच पायेंगे-सुप्रभात


