Wednesday, October 4, 2023
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जानिए आखिर पीपल का पेड़ उगता है कहाँ से आता है

साभार उदय नारायण सिंह

कबीर ने कहा था
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“कहे कबीर एक लाकड़ चाहीं,
बर-पीपर भा पाकड़ नाहिं”
इस का मतलब है कि कबीर ने एक लकड़ी की इच्छा प्रकट की है(सुबह उठ कर दांत साफ करने,दातून करने के लिए)पर वे इस पर शत प्रतिशत सहमत हैं कि वह लकड़ी का टुकड़ा-
बरगद,पीपल और पकड़ी का नहीं हो।इस के पीछे छुपे कारणों में बस एक ही बात इस विज्ञान के युग में दृष्टिगत होती है-उपरोक्त पेड़ ऑक्सीजन के बहुत महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं।सही जानें तो ये हम मानव के संगी-साथी हैं।इनके द्वारा दिये जा रहे ऑक्सीजन से हम जीवित हैं।
आपने कभी इन तीनों पेड़ों के बीजों को ध्यान से देखा है?निश्चित ही देखें होंगे आप-एक अदना सा,सरसों के दाने से भी छोटी औकात होती है इन के बीजों की।इसे चिड़िया खा लेती है और उन पंछियों के विष्ठा के द्वारा यत्र-तत्र ये बीज नये सिरे से उगने लगते हैं।ये सहज ही उगते हैं और इस के लिए इन्हे किसी विशेष वायुमंडलीय सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह एक सामान्य सी प्रक्रिया है।रोचक तो तब दिखता है,जब ये पेड़,एक पेड़ नहीं रहकर विशालकाय वृक्ष बन जाते हैं।इनकी विशालता तब और आश्चर्य चकित करती है,जब हमें मूल जड़ का सही पता नहीं चलता।इसकी लताएं भी जड़ बन जाती हैं।
इस चित्र को देखें।यह मात्र एक चित्र ही नहीं बल्कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड के रिकार्ड में वर्णित उस बरगद की तस्वीर है,जिसे भारत ही में पनपने और बढ़ने का सौभाग्य मिला है। कलकत्ता के बोटेनिकल गार्डन में इसे वर्ष 1786 में स्वयम् अंग्रेजों ने लगाया था।आज यही पेड़ जंगल बन चुका है। इस की गिनती सब से पुराने वृक्षों में होती है।इस की जड़ें इस तरह फैली हैं कि मूल जड़ पहचाना नहीं जा सकता।इस पेड़ पर पंछियों की 80 प्रजातियां रहतीं हैं।इस के घनेदार रुप ने एक जंगल का रुप ले लिया है।14,500 वर्ग मीटर में फैला यह बरगद 250 वर्ष पुराना है।
आप के यहां,हम सबों के यहां भी बरगद-पीपल जैसे पेड़ उगते हैं।इनका उगना हमारे लिए ही होता है और यही हमारे जीवन के आधार हैं।इन्हें हम कैसे सुरक्षित रख सकें,यह हमारा दायित्व है।

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