
साभार अजय कुमार सिंह आयकर आयुक्त उड़ीसा


क्यों दिखाई पड़ते है सबमें दोष? कारण क्या है? कारण है सिर्फ एक–अपने अहंकार की तृप्ति।दूसरे में दोष दिखायी पड़ता है। दूसरे में दोष की खोज चलती है।


इसका यह मतलब नहीं है कि दूसरों में दोष नहीं होते। इसका यह मतलब भी नहीं कि दूसरों में दोष हैं ही नहीं। दूसरों में दोष हों या न हो, यह सवाल गौण है महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या हम दूसरों में दोष देखकर अपने को बड़ा करने की चेष्टा में संलग्न हैं? अगर हम इस चेष्टा में सलंग्न हैं तो हम बहुत आत्मघाती हैं। हम अपने हाथ से अपने को नुकसान पहुंचा रहे हैं, किसी और को नहीं। जिसके हम दोष देख रहे हैं उसे तो फायदा भी हो सकता है, हमारे दोष देखने से। लेकिन हमें फायदा नहीं हो सकता। हो सकता है, हमारे दोष देखने से वह दोष को बदलने में लग जाये। वह अपनी कमियों को बदलने में लगे जाए, हमारे दोष देखने से। लेकिन अगर हमारा अहंकार तृप्ति होता हो तो हम बहुत खतरनाक ढंग से अपने ही हाथ-पैर काटने में लगे हैं। हमें कोई हित न होगा।
