
कुछ तो करना होगा हम सबों को भी


सतयुग की प्रसिद्ध कथा,जिसे आज भी सुनते हैं लोग-इस कथा के अनुसार हरिश्चंद्र ने सपना में अपने हाथ से एक ब्राम्हण को अपनी पूरी संपदा को दान करते हुए स्वयं को देखा।प्रातः होते ही उन्होंने ब्राम्हण को बुलाया और सचमुच ही में सब कुछ दान कर दिया।यह सत्यवादी होने का एक चारित्रिक गुण है।त्रेता में प्रभु राम ने जो संस्कार सीखे,उस अनुसार उन्होंने अपने को अमर कर लिया।इसका आंशिक रुप द्वापर से जुड़ी कहानियों को पढ़ने पर मिलता है।वर्तमान कलियुग में उपरोक्त कोई भी संस्कार देखने को नहीं मिलता और संभवतः यही वो कारण हैं,जिस से मानव का नैतिक ह्रास हुआ है।
आज किसी का,किसी से भी मुक्त भाव से जुड़ा कोई भी संबंध नहीं रहा।हर जगह वैमनस्यता हावी है।अंधी दौड़ में सामाजिक मान्यताओं ने दम तोड़ दिया है।एक दूसरे को कुचलते हुए,दबाते हुए हर कोई शीर्ष पर जाने को आतुर है।यहां तक कि मां-बाप, भाई-भाई के बीच के संबंधों के आदर्श और उसकी विराटता को भूल चुका है आदमी।यही वो कारण है कि हम हर पल कुछ खोते जा रहे हैं।इस का अंत यही होगा कि कहीं भी कुछ नहीं बचेगा।
सनातनी परंपरा का एक महत्वपूर्ण कारक होता था-शिक्षा।इस हेतु आश्रम की स्थापना की गई थी।एक विशेष आयु के बाद बच्चों को गुरु आश्रम के "गुरुकुल" में भेज कर बच्चों में संस्कार भरे जाते थे।निर्धारित समयावधि में वे बच्चे संस्कारित होकर निकलते थे और अपने अपने दायित्वों का निर्वहन करते थे।हर संबंध पूरी आस्था और समर्पण के संग पुष्पित और पल्लवित होते रहते थे।घर के बड़े बुजुर्गों के साथ साथ समाज के सभी तबकों को प्रतिष्ठा मिलती थी।सभी प्रसन्न रहते थे एक-दूसरे के संग।इसी हेतु सोलह संस्कारों की महत्ता को तत्कालीन समाज ने मान्यता दी थी।
दुर्भाग्य से हमारे देश को पाश्चात्य संस्कृतियों के कुसंस्कारों ने जकड़ लिया है।हालांकि इस के पीछे हमारे पुर्वजों के मन में आक्रमणकारियों द्वारा गुलामी काल में भर दिये गये हीन भावनाओं का प्रभाव ही रहा है,जो आज डेग-डेग पर हमें देखने को मिल रहा है।इसका खामियाजा हम जैसे तो भोग ही रहे हैं,हमारी भावी संततियों को भी भोगना होगा।
अभी भी समय है,जब हम अपने बच्चों में संस्कार भर सकें।बच्चों के भीतर उनके विशिष्ट गुणों को विकसित कर सकें,उनको एक कुशल नागरिक बना सकें।ऐसा करने से हर बच्चों के भीतर से एक जिम्मेदार नागरिक निकलेगा,जो अपनी कुशलता से सफल भारत का निर्माण कर सकेगा और प्रतिनिधित्व भी कर सकेगा।
आईए,एक निर्णय लें-हम अपने बच्चों में संस्कार भरेंगे और संस्कारवान बनायेंगे।हमारा देश पुनः एक समृद्ध देश बने,इस हेतु अपने अपने दायित्वों के अनुसार हम भी अपने कर्तव्य पथ पर चलेंगे।देखिएगा,अगर हम जग गये तो हमारी भावी पीढ़ी भी हमें तो आदर देगी हीं,स्वयं को भी गर्वित अनुभव करेगी।


साभार वाट्सअप
उदय नारायण सिंह
