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साभार उदय नारायण सिंह———————–
सिद्धांत है यह-माईनस माईनस प्लस होगा।ऐसे में यह सिद्धांत इस तस्वीर में भी लागू हो रहा है-दो निर्बल,सबल भाव में,सोये हैं साथ में।मानव मित्र का पांव नहीं और दूसरे का क्या कहना,फुटपाथ पर गुजर बसर करने वाला “अनेरिया” कुत्ता।ना कोई आपसी उलाहना,ना हीं कोई आपसी द्वेष।जहां मन किया,वहीं सो लिए,जहां भूख लगी,खा लिया।
इस दिव्यांग की परिस्थितियों पर एक बार विचार किये जाने की जरूरत है।अगर परिवार का सहारा या सहयोग मिला होता तो यह इस तरह की स्थिति में नहीं होता।ऐसे में इस बेचारे की भी दिनचर्या निर्धारित नहीं है।
एक मूक तो एक ठुकराया हुआ ठीकरा-शायद एक दूसरे की स्थिति को भली भांति समझने का सामर्थ्य रखते हैं,तभी तो निभ रही है।यहां संबंध किसी दबाव से नहीं है बल्कि यह संबंध भावनाओं का है।जानवर भी संवेदनशील होते हैं,विशेषकर घरेलू।कुत्ता भी घरेलू की श्रेणी में आता है।कुछ कुत्तों के लिए तो कुछ परिवारों में,बिस्तर तक बिछाये जाते हैं।ग़ौर करें,बिस्कुट्स और विशेष भोजनादि की व्यवस्था होती है पर यह भी तो दिव्यांग ही की तरह का है।इन दोनों की कहानी हर रोज फुटपाथ से शुरू होकर फुटपाथ पर खत्म हो जाती है।
ऐसे में इस दोस्ताने रिश्ते को भले हीं आप कोई नाम ना दें पर एक बात तो अवश्य है-जिसका कोई नहीं,
उस का तो ख़ुदा है यारों।ख़ुदा ने ग़र ज़िंदगी दी है तो बसर भी वही करेगा।इस की फ़िक्र ये क्यों करें?ये तो बस यही कहते होंगें आपस में-“ये दोस्ती,
हम नहीं तोड़ेंगे,तोड़ेंगे दम मगर,तेरा साथ ना छोड़ेंगे।”-सुप्रभात


