
आत्मनिर्भर बनने के लिए और नौकरी पाने के लिए युवा दिनरात बहा रहे पसीना
आज के इस मोबाइल युग मे भी युवा अपने को हिट और फिट रखने को दिख रहे है
जब किसी गांव या मुहल्ले में कोई युवक युवती सफल होते है उसके सफलता की चर्चा गांव की गलियारों से शहर के कोने कोने तक होती है अखबारों में टीवी चैनलों पर खबरे दिखाई देती है। लेकिन इसके ठीक विपरीत जब गांव मुहल्ले के युवा कुछ करने को मन में इरादे पालते हैं तो उनका साथ देने के लिए कोई आगे नहीं आता। कुछ ऐसा ही मामला छपरा शहर के पुलिस लाइन से आई है जहा एक तरफ युवाओं का जज्बा देख खुशी हो रही है तो दूसरी तरफ वहां की बदतर स्थिति देखकर स्थानीय ग्रामीण, जनप्रतिनिधि और शासन-प्रशासन के प्रति गुस्सा भी आ रहा है।


गौरतलब है कि सारण जिले का एकमात्र बंद पड़ा हवाई अड्डा का मैदान जो छपरा शहर के बड़ा तेलपा में स्थित है जिसके कुछ हिस्से आज झाड़ झकाड़, तो कुछ हिस्से स्थानीय लोगो द्वारा कब्जा कर लिया गया है वही कुछ खाली जगह है जहा सुबह और शाम में सैकड़ों लोग टहलते है तो अन्य समय में बच्चे वहा क्रिकेट और अन्य खेल खेलते है। इतना ही नही कई लोग बाइक और कार चलाना भी यही सीखते है। स्थानीय जनप्रतिनिधि के साथ साथ प्रशासन और राजनीतिक दलों द्वारा कई तरह के आयोजन भी इसी स्थल पर होते रहे है।
इसी हवाई अड्डे के एक कोने में एक ऐसा जगह है जिसे स्थानीय युवा जो कि अपनी लगन और मेहनत से साफ सफाई कर अपने लिए रनिंग ट्रैक और शारीरिक व्यायाम स्थल का निर्माण कर रखे है जिसपर प्रतिदिन वे विभिन्न तरह के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए शारीरिक फिटनेस की तैयारी करते हैं। इतना ही नहीं स्थानीय बुद्धिजीवी लोग भी सुबह शाम वहा टहलते है और इन युवाओं के कार्यों की सराहना करते है।
लेकिन युवाओं द्वारा किया गया साफ सफाई और खेल मैदान का निर्माण वही के कुछ स्थानीय लोगो को रास नहीं आ रहा है और वे उन युवाओं के दुश्मन बन बैठे है। बात करे ट्रैक की तो कभी कोई आकर दबंगई दिखाता है तो कभी कोई ट्रैक पर ही शौच कर जाता है हद तो तब हो जाती है जब मरे हुए जानवरो को ट्रैक पर फेक दिया जाता है जिसे इन्ही युवाओं के द्वारा जैसे तैसे सफाई कर स्थानीय लोगो से मदद को गुहार लगाया जाता है लेकिन बदले में इन्हे भला बुरा भी सुनना पड़ता है। लोग इन्हें यहां तक कहते है कि ‘ये ट्रैक तुम्हारे बाप का नही…’ और विरोध करने पर अभद्र गलियां तक दी जाती है।


अब उपरोक्त समस्याओं से तंग आकर युवाओं ने स्थानीय जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन के अधिकारी से सहयोग मांगा है लेकिन अभी तक कोई खास फायदा नही मिला है।
वही बात करें बिहार सरकार और केंद्र सरकार की तो युवाओं के लिए बड़े बड़े मंचो से बड़ी बड़ी घोषणाएं कर तो दी जाती है लेकिन धरातल पर सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता है। यहां तक कि जिले में खेल का मैदान कौन कहे शहर में शारीरिक फिटनेस तैयारी के लिए कोई जगह सरकार और प्रशासन द्वारा नही बनाया गया है जहा जाकर युवक युवती तैयारी कर सकें।
युवाओं का कहना है कि जब जिला प्रशासन द्वारा दिए गए रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने जिले को ओडीएफ घोषित कर दिया, मवेशियों के मौत के खुले में फेकने को अपराध करार दिया तो फिर इस पर स्थानीय प्रशासन चुप क्यों है?
सोशल मीडिया और चैनल के माध्यम से युवाओं ने सरकार और स्थानीय से मांग की है कि कम से कम अगर कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है तो जो साधन संसाधन हम युवाओं के द्वारा जुटाया गया है और एक बंजर पड़ी भूमि को उपयोगी बनाने का जो कार्य किया जा रहा है उसे संरक्षित करने में सहयोग किया जाएं।
वही इस मैदान को दौड़ने योग्य बनाने में जो अहम भूमिका है जिनका नाम जय प्रकाश,आकाश,सशांक,कुमार जेपी यादव,राजीव,सुमित,सुरेश,आशुतोष कुमार जैसे दर्जनों युवा इस कार्य मे लगे है।
